नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019( A )

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019a  
क्या यह कानून समानता के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 14 का हनन करता है
नहीं । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में भारत के नागरिकों के वर्तमान में इस अधिनियम के तहत नागरिकता देने का प्रावधान पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओं जो धार्मिक विभेद के कारण उत्पीड़ित है, को नागरिकता देने के लिए है। यह तीनों देश घोषित इस्लामिक राज्य है। इसलिए उसमें रहने वाले कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम धर्म को मानने वाला है, उसी धर्म के व्यक्तियों द्वारा उत्पीड़न किया जाना धार्मिक उत्पीड़न की परिधि में नहीं आएगा। इस प्रकार यह दो वर्ग बन जाते है और संशोधन 2019  असमान व्यक्तियों या समूहों को समानता सुनिश्चित नहीं करता बल्कि समान परिस्थ्तियों के व्यक्तियों व समूहों को ही समानता के अधिकार का आश्वासन देता है।
भारत में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 में यह प्रावधान है कि यदि कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति दूसरे अनुसूचित जाति के व्यक्ति का उत्पीड़न करता है तो वह अत्याचार की कोटि में नहीं आता है।

क्या यह विधेयक भारत के मुस्लिमों के हित व अधिकारों के विपरीत है?
नहीं । यह अधिनियम 2019 भारत के किसी भी नागरिक पर लागू नहीं होता। इसलिए इस अधिनियम के किसी के हित में होना या किसी के हित के विपरीत होने का कोई प्रश्न ही नहीं है। इसके अतिरिक्त यह अधिनियम बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में रहने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई जो इन देशों में अल्पसंख्यक है और धार्मिक रूप से उत्पीड़ित है, को नागरिकता देने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम 2019 में किसी भी प्रकार से किसी की नागरिकता के हनन करने का कोई प्रावधान नहीं है।

क्या भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए नैतिक रूप से बाध्य है?
पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान मूलतः भारत का ही भाग थे। अफगानिस्तान के अलग होने के बाद वहां रहने वाले हिन्दू सिख आदि अफगानिस्तान में ही रह गये थे और भारत पाक विभाजन के समय भी हिन्दू सिख आदि भी पाकिस्तान में ही रह गये थे। लेकिन उनके साथ धार्मिक भेदभाव के कारण निरन्तर अत्याचार होता चला आ रहा है।
भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान में हिन्दुआें की जनसंख्या 15 प्रतिशत थी जो कि वर्तमान में लगभग 01 प्रतिशत है। इसी प्रकार 1951 में पूर्वी पाकिस्तान जो कि आज बांग्लादेश है, में हिन्दुओं की जनसंख्या 22 प्रतिशत थी जो लगभग इस समय 10 प्रतिशत से भी कम है। अफगानिस्तान में गत 1970 तक हिन्दु-सिख की 7 लाख 70 हजार थी वो इस समय 7000 से भी कम है। (गत वर्ष अफगानिस्तान में वहां के अल्पसंख्यक सांसद श्री अवतार सिंह खालसा जो अफगानिस्तानी प्रधानमंत्री से मिलने जा रहे थे उनकी हत्या कर दी गई थी)
उक्त जनसंख्या का तीव्र गति से गिरावट यह स्वयं सिद्ध प्रमाण है कि या तो हिन्दु-सिख अल्पसंख्यकों को मार दिया गया या उनका धर्म परिवर्तन कर दिया गया है अथवा वे धार्मिक उत्पीड़न के कारण पलायन कर के चले गये है। यह हमारी आत्मा से पूछने का प्रश्न है कि इन हिन्दू-सिखों की चिंता भारत नहीं तो कौनसा राष्ट्र करेगा? क्योंकि हमने वर्तमान भारत के अस्तित्व में आने पर ही, सारे विश्व के हिन्दुओं को यह वचनबद्धता दी है कि जिसका कोई ओर देश नहीं है वो भारत का नागरिक है। (यह तथ्य संविधान सभा में 11 अगस्त 1949 को डॉ. पी. एल. देशमुख के प्रस्ताव में परिलक्षित होती है)

क्या पूर्वोत्तर राज्यों के हितों के साथ कुठाराघात है?
पूर्वोत्तर राज्यों में उनकी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए वर्तमान का बिल उन राज्यों में प्रवेश के लिए अनुमति लिए जाने की अनिवार्यता है। इसी प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों (आसाम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा) जो कि संविधान के छठी अनूसूची, को जो संरक्षण दिया गया है, वे यथावत बना रहेगा। और इस प्रकार उनके विशेष अधिकारों पर किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। बंगाल पूर्वी सीमांत विनियम 1973 की ’’आंतरिक रेखा प्रणाली’’ के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को प्रदान कि ये गए कानूनी संरक्षण को बरकरार रखा गया है।
यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि पूर्वोत्तर राज्यों सांस्कृतिक लक्षण के संरक्षण के लिए 1985 में नागरिकता अधिनियम 1955 में धारा 6अ जोड़ी गई थी। वर्तमान संशोधन द्वारा जोड़ी गई धारा 6ब उपधारा 04 में इस विशिष्ट अधिकार की पुनः पुष्टि की गई है।
पूर्व में भी जब कभी भारतीय मूल के व्यक्तियों के साथ उत्पीड़न हुआ है तो भारत द्वारा उन लोगों को अपने यहां आश्रय भी दिया और नागरिकता भी दी है। युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन द्वारा 70 के दशक में जब भारतीय मूल के लोगों को वहां से खदेड़ा गया था तो भारत ने उनको शरण दी थी। इसी प्रकार केनया के मामले में भी भारत ने यही सहृदयता दिखाई थी। श्रीलंका में तमिल सिंहली संघर्ष के दौरान लगभग 1 लाख 50 हजार लोगों को नागरिकता दी थी।  

जी.एस. गिल (पूर्व महाधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर)

एस.पी. सिंह

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